हमारे पूर्वज
तनिक भी
खतरा महसूसते
दुर्गम पहाड़ों पर
चले जाते ।
पहाड़ों की
यह दुर्गमता
उनका रक्षा-कवच होता
पहाड़ों के
बीहड़ जंगल
उन्हें सुरक्षा
और
आश्वस्ति देता ।
पहाड़ों की गगनचुम्बी
ऊँचाई पर
बादल रुई के फाहों सा
तैरता रहता
खुरदरे हाथों से
वह उनके
नरमाहट को सहलाते ।
पहाड़ों की ओट में
डूबता-उतराता सूरज
आँख-मिचौली खेलता
यह पहाड़
शरण है
हमारे पूर्वज का
अलग कैसे करोगे
पहाड़
और
उसके आदिम निवासी को !