मैं वाङपान की
बूढ़ी माँ से मिली
हिम्मत बटोर कर
पूछ ही लिया-
‘ वाङपान की
याद नहीं आती ?’
नम आँखें
मुझे देर तक
ताकती रही
एक अर्थपूर्ण
गहरी साँस भरकर
फिर बोली-
‘ अरसा हो गया
उसे देखे
कलेजा पर
पत्थर रखकर
यहाँ से भगाया था
जंगल-आदमी1 उसे
जबरन उठाकर
ले जाते
अपने दल में
शामिल करने ।
हो न हो
मुण्ड-आखेटकों की
वीर भूमि को
जरूर किसी का
अभिशाप लगा है ।
बरसों से
शांति
और
प्रगति
इस भूमि से
रूठी हुई है ।‘
मैंने उनके
झुर्रियों से बनी
नक्काशीदार हाथ को
थाम उन्हें बतलाया-
‘ वाङपान घर
लौटना चाहता है’
वह सकपकाकर बोली-
नहीं, नहीं !
उसे पूछो
जंगल-आदमी
या
भारतीय आर्मी
दोनों में से
किसकी गोली का
स्वाद पसंद है ?
बेटा मेरा
दूर सही
पर है जिंदा
माँ के
मन को
इतनी तसल्ली
काफी है ।
इधर मुक्ति कहाँ
जंगल-आदमी का शिकंजा
और
भारतीय आर्मी का चँगुल
इनके बीच
पीसने को अभिशप्त
हमारा युवा’
वापसी में
बार बार
मैं
उन तमाम
नोक्टे-वांचो
युवाओं के बारे
सोचे जा रही थी
जिनको इंतजार है
अमन बहाली का
घर लौटने का ।