लौटने के इंतजार में by Jamuna Bini

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मैं वाङपान की
बूढ़ी माँ से मिली

हिम्मत बटोर कर
पूछ ही लिया-

‘ वाङपान की
याद नहीं आती ?’

नम आँखें
मुझे देर तक

ताकती रही
एक अर्थपूर्ण
गहरी साँस भरकर

फिर बोली-

‘ अरसा हो गया
उसे देखे
कलेजा पर
पत्थर रखकर

यहाँ से भगाया था
जंगल-आदमी1 उसे
जबरन उठाकर
ले जाते
अपने दल में
शामिल करने ।

हो न हो
मुण्ड-आखेटकों की
वीर भूमि को
जरूर किसी का
अभिशाप लगा है ।

 

बरसों से
शांति
और
प्रगति
इस भूमि से
रूठी हुई है ।‘

 

मैंने उनके
झुर्रियों से बनी
नक्काशीदार हाथ को
थाम उन्हें बतलाया-
‘ वाङपान घर
लौटना चाहता है’

वह सकपकाकर बोली-
 नहीं, नहीं !

उसे पूछो
जंगल-आदमी
या
भारतीय आर्मी
दोनों में से
किसकी गोली का
स्वाद पसंद है ?

 

बेटा मेरा
दूर सही
पर है  जिंदा
माँ के
मन को
इतनी तसल्ली
काफी है ।

 

इधर मुक्ति कहाँ
जंगल-आदमी का शिकंजा
और
भारतीय आर्मी का चँगुल
इनके बीच
पीसने को अभिशप्त
हमारा युवा’
वापसी में
बार बार
मैं
उन तमाम
नोक्टे-वांचो
युवाओं के बारे
सोचे जा रही थी
जिनको इंतजार है
अमन बहाली का

 घर लौटने का ।

 

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Ode to a Poetess came into being during the lockdown. It's during the brimming rains of August when I felt the necessity that we, women need our very own platform where we can share our thoughts in literature, as is,unaltered. This is a only women portal that welcomes all format of literature, art and celebrates it's creator, the woman who's unique, who is art herself! _Monroe Gogoi Phukan Founder of Ode to a Poetess.

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