अभी खुश तो उदास हू अभी
कभी सागर तो प्यास हू कभी
हू कोरा कागज़ या किताब सी हू
मै सरका दुपट्टा और हिजाब भी हू
कोई पुछे तो क्या जवाब मै दू
सबको समझाऊ तो समझाऊ कैसे
मै पूरी सी या अधूरी सी उस चाँद के जैसे।।
एक तरंग या तूफान सी हू
हू एक बादल या पुरे आसमान सी हू
कश्मकश मे हू क्या खुद्को नाम मै दू
सबको समझाऊ तो समझाऊ कैसे
मै पूरी सी या अधूरी सी उस चाँद के जैसे।।
क्यू सोच मे हू
इसमे हर्ज़ ही क्यू
माना दाग हू चाँद का पर चाँद तो हू
सबको कहा सब मिल जाता है
मौर खूबसूरत होकर भी पैरों पे शौक मनाता है
थोडे झूठे थोडे सच्चे है, पर हम एसे ही तो अच्छे है
क्यू समझाए किसी को क्यू है हम एसे
हा मैं पूरी भी और अधूरी भी उस चाँद के जैसे।।